Harvard-MIT ki Badi Win: Trump ke Visa Rule par Court ne Lagai Rok, International Students ke Liye Bumper Relief

तो बात 2020 की है, जब कोविड ने पूरी दुनिया को लपेटे में लिया हुआ था। स्कूल-कॉलेज सब ऑनलाइन हो गए, क्योंकि भाई, जान है तो जहान है! लेकिन ट्रंप

Harvard-MIT ki Badi Win: Trump ke Visa Rule par Court ne Lagai Rok, International Students ke Liye Bumper Relief
Harvard-MIT ki Badi Win

क्या है पूरा माजरा?

तो बात 2020 की है, जब कोविड ने पूरी दुनिया को लपेटे में लिया हुआ था। स्कूल-कॉलेज सब ऑनलाइन हो गए, क्योंकि भाई, जान है तो जहान है! लेकिन ट्रंप प्रशासन को शायद ये बात पसंद नहीं आई। उन्होंने जुलाई 2020 में एक नियम निकाल दिया कि अगर कोई यूनिवर्सिटी पूरी तरह ऑनलाइन क्लास कर रही है, तो वहां के विदेशी स्टूडेंट्स को या तो अमेरिका छोड़ना होगा, नहीं तो उनका F-1 वीजा कैंसिल! अरे, ये क्या बवाल है? यानी स्टूडेंट्स को बोल दो कि या तो महामारी में क्लासरूम में जाओ, या अपने देश वापस जाओ। फ्लाइट्स बंद, टिकट के दाम आसमान छू रहे, और ऊपर से ये तमाशा? यहां देखो वो फरमान क्या था.

हार्वर्ड और एमआईटी ने कहा, “बस, अब और नहीं!” दोनों ने मिलकर मैसाचुसेट्स की फेडरल कोर्ट में केस ठोक दिया। और 14 जुलाई 2020 को कोर्ट ने वो किया, जिसका हर स्टूडेंट को इंतजार था—उस बेकार नियम पर रोक लगा दी! कोर्ट की पूरी कहानी यहां पढ़ो.

पूरा ड्रामा, देसी स्टाइल में

सोचो, तू एक इंडियन स्टूडेंट है, लाखों रुपये खर्च करके हार्वर्ड में पढ़ रहा है। कोविड की वजह से यूनिवर्सिटी ऑनलाइन हो गई, और तुझे बोल दिया जाए कि “भाई, अब निकल लो अमेरिका से, क्योंकि तुम्हारी क्लास Zoom पर है!” अरे, ये क्या मजाक है? ऊपर से फ्लाइट्स मिल नहीं रही, घर वापस जाओ तो टिकट के दाम सुनके चक्कर आ जाए। और अगर यूनिवर्सिटी ने इन-पर्सन क्लास शुरू की, तो कोविड का रिस्क! मतलब, स्टूडेंट्स की जिंदगी से खिलवाड़।

हार्वर्ड और एमआईटी ने इसे पर्सनल ले लिया। उन्होंने कोर्ट में कहा, “ये नियम तो बिल्कुल बकवास है!” उनका तर्क था कि ये नियम बिना सोचे-समझे बनाया गया, कोविड की सिचुएशन को इग्नोर करता है, और स्टूडेंट्स को बेवजह सजा देता है। साथ ही, यूनिवर्सिटीज को भी मजबूर करता है कि वो हेल्थ रिस्क के बावजूद क्लासरूम खोलें। इनके केस की पूरी डिटेल यहां है.

कोर्ट ने क्या ठोका?

मैसाचुसेट्स की जज एलिसन बरोज ने केस सुना और बोलीं, “ये नियम तो टोटल फालतू है!” उन्होंने तुरंत एक प्रिलिमिनरी इंजंक्शन (यानी अस्थायी रोक) लगा दी। कोर्ट का कहना था कि ये नियम बिना किसी ठोस वजह के बनाया गया, और इससे स्टूडेंट्स को भारी नुकसान हो सकता है। जज ने ये भी कहा कि कोविड के टाइम में यूनिवर्सिटीज को ऑनलाइन क्लास करने का पूरा हक है, और स्टूडेंट्स को इसकी सजा देना गलत है। कोर्ट के फैसले की पूरी बात यहां पढ़ लो.

स्टूडेंट्स और यूनिवर्सिटीज के लिए क्या मतलब?

ये फैसला सुनके विदेशी स्टूडेंट्स ने राहत की सांस ली। मतलब, अब तू बिना डर के अपनी Zoom क्लास अटेंड कर सकता है, और अमेरिका में रहके अपनी डिग्री पूरी कर सकता है। हार्वर्ड के प्रेसिडेंट लैरी बैको ने कहा, “ये हमारे स्टूडेंट्स के लिए बड़ी जीत है। शिक्षा का हक सबको है, चाहे कोविड हो या कुछ और!” उनका बयान यहां देखो.

ये सिर्फ हार्वर्ड और एमआईटी की जीत नहीं है—ये हर उस यूनिवर्सिटी के लिए मिसाल है, जो अपने स्टूडेंट्स के लिए लड़ रही है। अब बाकी कॉलेज भी इस फैसले से हिम्मत पकड़ सकते हैं।

अब आगे क्या?

हालांकि ये रोक अस्थायी है, लेकिन इसने ट्रंप प्रशासन के मंसूबों पर पानी फेर दिया। हो सकता है वो फिर से कोई नया नियम लाने की कोशिश करें, लेकिन अभी के लिए स्टूडेंट्स और यूनिवर्सिटीज की जीत पक्की है। कुछ एक्सपर्ट्स की राय यहां पढ़ो.

लास्ट में

तो बस, हार्वर्ड और एमआईटी ने दिखा दिया कि अगर सही के लिए लड़ो, तो जीत पक्की है। ये फैसला हर उस स्टूडेंट के लिए है, जो अमेरिका में अपनी मेहनत और सपनों को सच करने की जद्दोजहद कर रहा है। अब बेफिक्र होके पढ़ाई करो, और Zoom पर अपनी प्रोफाइल पिक तो थोड़ी स्मार्ट रखो! 😎

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